आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
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हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
जब चाँद की वादियों से नग़्मे बरसें
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं अबरू के हिलाल
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
ऐ रूप की लक्ष्मी ये जल्वों का राग