परतव-ए-हुस्न से ज़र्रे भी बने आईने
कितने जल्वे किए अर्ज़ां तिरी रानाई ने
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(785) Peoples Rate This
महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ तेरी ही बज़्म-ए-नाज़ है
ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता
कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा
फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो
का'बे में हो या बुत-ख़ाने में होने को तो सर ख़म होता है
जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं
हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
मायूस दिलों को अब छेड़ो भी तो क्या हासिल
दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना
सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता
शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है