मेरी जबीन-ए-शौक़ ने सज्दे जहाँ किए
वो आस्ताँ बना जो कभी आस्ताँ न था
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यक़ीन-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा हमें बावर नहीं आता
इक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त
किसी से शिकवा-ए-महरूमी-ए-नियाज़ न कर
शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है
सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर न थे
हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
मायूस दिलों को अब छेड़ो भी तो क्या हासिल
दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल
परतव-ए-हुस्न से ज़र्रे भी बने आईने