दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा न हुआ
ये वफ़ादार बेवफ़ा न हुआ
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क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
मेरी जबीन-ए-शौक़ ने सज्दे जहाँ किए
आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर न थे
शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है
क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ से 'फ़िगार'
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है
चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं
हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी