टलते हैं कोई हाथ चले या ज़बाँ चले

टलते हैं कोई हाथ चले या ज़बाँ चले

हम दाद-ख़्वाह साथ हैं उस के जहाँ चले

क्या हम-सरी हो तीर की उस तीर-ए-आह से

ये ये ही तीर है कि सदा बे-कमाँ चले

सर पर तो धर के ना'श हमारी को ता-मज़ार

हर इक क़दम पे रोते हुए ख़ूँ-फ़िशाँ चले

लाए थे सर पे धर के किस इख़्लास से हमें

बस आँख ओझल होते ही ऐ दोस्ताँ चले

यारों ने अपनी राह ली 'फ़िद्वी' हमीं रहे

वो चीज़ अब कहाँ है कि पूछे कहाँ चले

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