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ज़िंदगी और मौत - फ़ज़लुर्रहमान कविता - Darsaal

ज़िंदगी और मौत

मौत इक ख़्वाब है अज्ज़ा-ए-बदन का हमदम

ज़िंदगी नाम है एहसास की बेदारी का

मौत जिस रह-गुज़र-ए-शौक़ में रहज़न का नक़ाब

ज़िंदगी रख़्त इसी राह-ए-तलब-गारी का

ज़िंदगी जिस्म-ओ-दिल-ओ-जाँ की मुनज़्ज़म क़ुव्वत

मौत इज़हार परेशानी-ओ-लाचारी का

मौत सहराओं में बिखरे हुए ज़र्रों का ग़ुबार

ज़िंदगी नक़्श उन्ही ज़र्रों की चमन कारी का

मौत बे-माएगी दामान-ए-ज़मीं की गोया

ज़िंदगी सिलसिला बादल की गुहर-बारी का

ज़िंदगी क़ाफ़िला-ए-सई की पैहम तग-ओ-दौ

मौत दम-भर के लिए वक़्फ़ा है बेकारी का

ज़िंदगी का जिसे मा'लूम हो मतलब उस को

मौत का ख़ौफ़ न गर्दूं की तबह-कारी का

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