ये सूरज क्यूँ भटकता फिर रहा है
मिरे अंदर उतर जाता तो सोता
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हर इक शय ख़ून में डूबी हुई है
इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था
जिन ख़्वाबों से नींद उड़ जाए ऐसे ख़्वाब सजाए कौन
न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती
हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता
मैं उस के ख़्वाब में कब जा के देख पाया हूँ
रिश्ता खुजियाया हुआ कुत्ता है
सुनते हैं कि इन राहों में मजनूँ और फ़रहाद लुटे
सूरज ऊँचा हो कर मेरे आँगन में भी आया है
रात को ख़्वाब बहुत देखे हैं