हर इक शय ख़ून में डूबी हुई है
कोई इस तरह से पैदा न होता
Gulzar
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ये सन्नाटा बहुत महँगा पड़ेगा
रात को ख़्वाब बहुत देखे हैं
उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ
जिन ख़्वाबों से नींद उड़ जाए ऐसे ख़्वाब सजाए कौन
रिश्ता खुजियाया हुआ कुत्ता है
हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता
रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया
सफ़र
कली कली का बदन फोड़ कर जो निकला है
मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा
जब जंगल बस्ती में आया
आ के हो जा बे-लिबास