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मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा - फ़ज़्ल ताबिश कविता - Darsaal

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

धुएँ को जीतने वालों का सूरज दूसरा होगा

अगर मर कर फिर उठना है तो मरने की ख़ुशी क्या है

बदन खोने का ग़म जीने की ख़ुशियों से सिवा होगा

सुना है ये ज़मीं उड़ती फिरेगी रूई की सूरत

तमाशा करने वाला ही तमाशा देखता होगा

मैं चिड़ियों को उलझते देख कर लड़ता समझता हूँ

मगर सच्चाई क्या है ये उन्हीं से पूछना होगा

तुम्हारा जिस्म मेरी आग में तप कर निखरता है

मगर इक रोज़ मेरा जिस्म ठंडा पड़ गया होगा

मुझे ख़ुशबू लपेटे जिस्म कुछ अच्छे नहीं लगते

मगर उस को मिरा ख़ाली बदन भी काटता होगा

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