फ़ज़्ल ताबिश कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़ज़्ल ताबिश
नाम | फ़ज़्ल ताबिश |
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अंग्रेज़ी नाम | Fazl Tabish |
जन्म की तारीख | 1933 |
मौत की तिथि | 1995 |
जन्म स्थान | Bhopal |
ये सूरज क्यूँ भटकता फिर रहा है
ये बस्ती कब दरिंदों से थी ख़ाली
वही दो-चार चेहरे अजनबी से
सूरज ऊँचा हो कर मेरे आँगन में भी आया है
सुनते हैं कि इन राहों में मजनूँ और फ़रहाद लुटे
रात को ख़्वाब बहुत देखे हैं
न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती
माँगने से हुआ है वो ख़ुद-सर
कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर
हर इक शय ख़ून में डूबी हुई है
सफ़र
मौत माँ की तरह साथ है
जब जंगल बस्ती में आया
एक नज़्म
एक नज़्म
आ के हो जा बे-लिबास
ये सन्नाटा बहुत महँगा पड़ेगा
उसे मालूम है मैं सर-फिरा हूँ
रिश्ता खुजियाया हुआ कुत्ता है
रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया
न कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती
मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा
मैं उस के ख़्वाब में कब जा के देख पाया हूँ
ख़्वाहिशों के हिसार से निकलो
कली कली का बदन फोड़ कर जो निकला है
जिन ख़्वाबों से नींद उड़ जाए ऐसे ख़्वाब सजाए कौन
इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था
इन आँखों में बिन बोले भी मादर-ज़ाद तक़ाज़ा है
हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता