अब वो महकी हुई सी रात नहीं
अब वो महकी हुई सी रात नहीं
बात क्या है कि अब वो बात नहीं
फिर वही जागना है दिन की तरह
रात है और जैसे रात नहीं
बात अपनी तुम्हें न याद रही
ख़ैर जाने दो कोई बात नहीं
कुछ नहीं है तो याद है उन की
उन से तर्क-ए-तअल्लुक़ात नहीं
फिर भी दिल को बड़ी उमीदें हैं
गो ब-ज़ाहिर तवक़्क़ुआत नहीं
इश्क़ होता है ख़ुद-ब-ख़ुद पैदा
इश्क़ के कुछ लवाज़िमात नहीं
ऐसे 'फ़ज़ली' के शेर कम होंगे
जिन में कुछ दिल की वारदात नहीं
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