सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
तिरी ख़ुशी के लिए तेरा ग़म भी रखना है
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ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
सरहदें
मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में
इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ
मेरे होंटों पे तेरे नाम की लर्ज़िश तो नहीं
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ