हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'
कहीं किताबें कहीं रिसाले पड़े हुए हैं
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1038) Peoples Rate This
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं
मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है
ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं
पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते
सरहदें
अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे