अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे
क्यूँ ख़ून पी रहा है सितमगर शराब पी
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ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे
मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ
मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया
ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'
मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में
अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए
सरहदें
ख़्वाब में देख रहा हूँ कि हक़ीक़त में उसे
कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं