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अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए - फ़ाज़िल जमीली कविता - Darsaal

अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए

अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए

उस की तस्वीर है पानी में न रक्खी जाए

एक ही दिल में ठहर जाएँ हमेशा के लिए

ज़िंदगी नक़्ल-ए-मकानी में न रक्खी जाए

ज़िंदा रखना हो मोहब्बत में जो किरदार मिरा

साअत-ए-वस्ल कहानी में न रक्खी जाए

यूँ तो मिलते हैं सभी लोग बिछड़ने के लिए

ना-गहानी ये जवानी में न रक्खी जाए

भूल जाना है तो ऐ दोस्त भुला दे मुझ को

याद अब याद-दहानी में न रक्खी जाए

जब कोई एक कशिश खींच रही है हम को

कीमिया फ़ल्सफ़ा-दानी में न रक्खी जाए

दिल भी थोड़ा सा सुबुक-दोश-ए-तमन्ना कर दे

कुछ तबीअत भी गिरानी में न रक्खी जाए

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