ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक
ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक
गूँजती है वादी-ए-जाँ दूर तक
हाए रे वीरानी-ए-राह-ए-हयात
कोई सदा है न निशाँ दूर तक
मिल न सका अम्न-ओ-सुकूँ का पता
ढूँड चुकी उम्र-ए-रवाँ दूर तक
शम-ए-तरब जल्वा-फ़गन आस-पास
मशअ'ल-ए-ग़म नूर-फ़िशाँ दूर तक
सिमटे हुए अम्न के पैग़ाम्बर
फैले हुए क़ातिल-ए-जाँ दूर तक
शहर में देहात में हर राह में
ख़ून की इक जू-ए-रवाँ दूर तक
पूछ न 'फ़ाज़िल' मिरी दुनिया का रंग
आग हर इक सम्त धुआँ दूर तक
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