बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया
बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया
उठा कर नाज़ तेरे नाज़-बरदारों ने क्या पाया
वो काँटे ही सही कुछ तो दिया हम को बयाबाँ ने
मगर गुलशन से फूलों के तलब-गारों ने क्या पाया
ज़रा मा'लूम तो कीजे ख़िरद पर मरने वालों से
कि ठुकरा कर जुनूँ को इन ज़ियाँ-कारों ने क्या पाया
कलेजा तेरा फट जाएगा वाइज़ फ़र्त-ए-हैरत से
बता दूँ मैं अगर तुझ को गुनहगारों ने क्या पाया
बयाबाँ ग़म न कर बे-फ़ैज़ी-ए-अब्र-ए-बहाराँ का
तिरा दामन है गर ख़ाली तो गुलज़ारों ने क्या पाया
ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-दौराँ
मिटा कर मुझ को 'फ़ाज़िल' इन सितम-गारों ने क्या पाया
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