बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं
बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं
ये बात नक़्स-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
हयात की शब-ए-तारीक ख़त्म होती है
क़ज़ा तुलू-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं
जो देखिए तो कफ़-ए-गुल-फ़रोश भी है हयात
ग़लत कि दामन-ए-तर के सिवा कुछ और नहीं
गुज़र के हद से हर इक शय बर-अक्स होती है
कमाल-ए-ऐब-ए-हुनर के सिवा कुछ और नहीं
ये रंग जो नज़र आता है चेहरा-ए-गुल पर
हमारे ख़ून-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
बशर है जौहर-ए-किरदार से गराँ-माया
गुहर में आब-ए-गुहर के सिवा कुछ और नहीं
नज़र-फ़रेब नज़ारे जहाँ के ऐ 'फ़ाज़िल'
फ़रेब-ए-हुस्न-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
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