अदीब था न मैं कोई बड़ा सहाफ़ी था
अदीब था न मैं कोई बड़ा सहाफ़ी था
ज़माना फिर भी मिरे फ़न का ए'तिराफ़ी था
मुझे भी ज़हर दिया क्यूँ न हक़-बयानी पर
कि ये गुनाह तो ना-क़ाबिल-ए-मुआ'फ़ी था
किसी से एक भी फ़ितरत का राज़ खुल न सका
अगरचे दौर ज़माने का इंकिशाफ़ी था
मुसीबतों ने तो नाहक़ उठाईं तकलीफ़ें
मुझे मिटाने को मेरा शबाब काफ़ी था
दिल-ओ-नज़र न उलझते तो हल निकल आता
हज़ार मसअला-ए-दीद इख़्तिलाफ़ी था
वो मेरी राय से तो मुत्तफ़िक़ था ऐ 'फ़ाज़िल'
ज़रीफ़-कार मगर उस का इन्हिराफ़ी था
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