Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_294ad7df16e1d73c94182f3bf876436b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना - फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी कविता - Darsaal

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

ज़रा सी धूप भी इस साएबाँ में रख देना

तुझे हवस हो जो मुझ को हदफ़ बनाने की

मुझे भी तीर की सूरत कमाँ में रख देना

शिकस्त खाए हुए हौसलों का लश्कर हूँ

उठा के मुझ को सफ़-ए-दुश्मनाँ में रख देना

जदीद नस्लों की ख़ातिर ये वरसा काफ़ी है

मिरे यक़ीं को हिसार-ए-गुमाँ में रख देना

ये मौज ता-कि सफ़ीने को गर्म-रौ रक्खे

कुछ आग ख़ेमा-ए-आब-ए-रवाँ में रख देना

बहुत तवील है काले समुंदरों का सफ़र

मुझे हवा की जगह बादबाँ में रख देना

मैं अपने ज़िम्मे किसी का हिसाब क्यूँ रक्खूँ

जो नफ़ा है उसे जेब-ए-ज़ियाँ में रख देना

(914) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena In Hindi By Famous Poet Faza Ibn E Faizi. Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena is written by Faza Ibn E Faizi. Complete Poem Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena in Hindi by Faza Ibn E Faizi. Download free Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena Poem for Youth in PDF. Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena is a Poem on Inspiration for young students. Share Sarab-e-jism Ko Sahra-e-jaan Mein Rakh Dena with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.