इक़रा की सौग़ात की सूरत आ
इक़रा की सौग़ात की सूरत आ
होंटों पर आयात की सूरत आ
सूख चले हैं आँगन के पौदे
बे-मौसम बरसात की सूरत आ
शाख़-ए-यक़ीं की बे-समरी और मैं
बार-आवर शुबहात की सूरत आ
मैं पर्वर्दा तीरा-बख़्ती का
मेरे घर तो रात की सूरत आ
मैं अपनी तहदीद में हूँ मशग़ूल
आ तौसी-ए-ज़ात की सूरत आ
फ़िक्र के तीरा-ख़ाने रौशन कर
लौ देते जज़्बात की सूरत आ
रास आए मुझ को उजियाले कब
मुबहम इम्कानात की सूरत आ
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