फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नाम | फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Faza Ibn E Faizi |
जन्म की तारीख | 1923 |
मौत की तिथि | 2009 |
अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग
ज़िंदगी ख़ुद को न इस रूप में पहचान सकी
यूँ मआनी से बहुत ख़ास है रिश्ता अपना
ये तमाशा दीदनी ठहरा मगर देखेगा कौन
वो मेल-जोल हुस्न ओ बसीरत में अब कहाँ
वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे
तुझे हवस हो जो मुझ को हदफ़ बनाने की
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
तलाश-ए-मअ'नी-ए-मक़्सूद इतनी सहल न थी
शख़्सियत का ये तवाज़ुन तेरा हिस्सा है 'फ़ज़ा'
पलकों पर अपनी कौन मुझे अब सजाएगा
नुत्क़ से लब तक है सदियों का सफ़र
मुझे तराश के रख लो कि आने वाला वक़्त
लोग मुझ को मिरे आहंग से पहचान गए
किसी लम्हे तो ख़ुद से ला-तअल्लुक़ भी रहो लोगो
किस तरह उम्र को जाते देखूँ
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
ख़बर मुझ को नहीं मैं जिस्म हूँ या कोई साया हूँ
कहाँ वो लोग जो थे हर तरफ़ से नस्तालीक़
जला है शहर तो क्या कुछ न कुछ तो है महफ़ूज़
हम हसीन ग़ज़लों से पेट भर नहीं सकते
हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला
ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना
एक दिन ग़र्क़ न कर दे तुझे ये सैल-ए-वजूद
देखना हैं खेलने वालों की चाबुक-दस्तियाँ
ऐ 'फ़ज़ा' इतनी कुशादा कब थी मअ'नी की जिहत
अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया
अब मुनासिब नहीं हम-अस्र ग़ज़ल को यारो
आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा