अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना
अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना
बिछड़ते लम्हों की दास्ताँ को भी याद रखना
ज़मीं पे अपने क़दम जमा कर न भूल जाना
सरों पे ठहरे इस आसमाँ को भी याद रखना
हवा-ए-तिश्ना का छीन लेना मकीन-ए-जाँ को
मगर लरज़ते हुए मकाँ को भी याद रखना
सराब आख़िर मिरी ही आँखों का मोजज़ा है
यक़ीं की मंज़िल में इस गुमाँ को भी याद रखना
अगरचे ख़्वाहिश का अक्स लफ़्ज़ों में आ गया है
जो चश्म-ए-तर में है इस ज़बाँ को भी याद रखना
तुझे ख़बर है कि इब्तिदा भी है इंतिहा भी
जहान-ए-मअ'नी में दरमियाँ को भी याद रखना
कभी जो ऐबों के तीर घाएल करें नज़र को
तो ख़्वाहिशों की झुकी कमाँ को भी याद रखना
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