मिरा रोता बच्चा बहलता था जिस से
वो लकड़ी का हाथी उठा ले गया वो
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मुआ'फ़ी
ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप
बग़ैर नक़्शे के सारे मकान लगते हैं
मिरे घर की ईंटें चुरा ले गया वो
आइने रूप चुरा लेंगे उधर मत देखो
अब के रूठे तो मनाने नहीं आया कोई
कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है
उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले
टेढ़ी लकीर
कॉपीराइट
घर की मुश्किल कोई हल चाहती है
याद