हज़ारों साल की थी आग मुझ में
रगड़ने तक मैं इक पत्थर रहा था
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(819) Peoples Rate This
जो मरा है हादसे में मिरा उस से क्या था रिश्ता
मिल रही है मुझे ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा
कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल
वाईपर
मिरे घर की ईंटें चुरा ले गया वो
इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी
ख़िज़ाँ में चीनी चाय की दावत
इश्क़ झेला है तो चेहरा ज़र्द होना चाहिए
याद
ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप
चौथी का जोड़ा