कॉपीराइट

क्या रूमानी लम्हा था

शोअ'रा पर ये शर्त लगी थी

छत पर पूरा चाँद देख कर

सब को नज़्म सुनानी होगी

पूरे चाँद को तकते तकते

मैं ने भी इक नज़्म सुनाई

मेरे लिए वो नज़्म नहीं थी

बेल कोई अंगूर की थी

जिस ने मेरा ख़ून पिया था

चाँद ने लेकिन शे'र सुने तो

वो बेहद मसहूर हुआ था

ऐसा लगा कि उस के तन से

छलबल उड़ती

धूल सुनहरी

सुनने वालों की पलकों पर आ बैठी हो

लोगों ने यूँ दाद मुझे दी

गोया चाँद के कॉपीराइट मेरे हूँ

मैं ने अपनी नज़्म सुनाई उर्दू में

क्या रूमानी लम्हा था

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