Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_11d817b522f41b371af76fd252fa6487, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अलमिया-ए-नक़्द - फ़े सीन एजाज़ कविता - Darsaal

अलमिया-ए-नक़्द

ये बे-रहम चोटों ख़सारों की दुनिया

ये काग़ज़ के झूटे सहारों की दुनिया

ये रूपयों के लालच के मारों की दुनिया

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

हर इक जेब छलनी हर इक आँख प्यासी

हर इक रुख़ पे फैली हुई बद-हवासी

हो मंसूख़ रूपियों की कैसे निकासी

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

हमारा है फिर भी हमारा नहीं है

तसर्रुफ़ पर अपना इजारा नहीं है

बुलंदी पर अपना सितारा नहीं है

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये ख़ूँ और पसीने की गाढ़ी कमाई

समझ में यही बात अब तक न आई

भला कब ग़रीबों के ये काम आई

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

पड़ी बाँझ हैं ए-टी-एम की मशीनें

घिसींं बैंक की चौखटों पे जबीनें

क़तारों में सब छुप गई हैं ज़मीनें

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो दुनिया

सभी काले धन वाले हैं ख़ैरियत से

जहाँ हैं जिधर हैं वो हैं आफ़ियत से

मिले न मिले उन को अच्छी निय्यत से

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

चमकदार धन काले धन से निकालो

ग़रीबों को रंज-ओ-मेहन से निकालो

हमें तुम हमारे कफ़न से निकालो

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये मज़दूर ये आम ताजिर ये मोदी

सभी सादा-लौहों की कश्ती डुबो दी

किसी के भी पीछे से सूई चुभो दी

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो किया है

बड़ी शिद्दतें औरतें सह रही है

खड़ी अपने अश्कों में वो बह रही है

रक़म ले के हाथों में ये कह रही है

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

रूपए घर में रखने की अच्छी सज़ा है

न रोटी पकी है न सालन बना है

कई दिन से घर में न चूल्हा जला है

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

नए नोट का क़द्द-ओ-क़ामत तो देखो

ये चूरन की पर्ची की शामत तो देखो

ये काग़ज़ की पतली हजामत तो देखो

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये है बीस सौ का मगर सौ से हल्का

है बारीक इतना कि सुर्मा खरल का

करंसी की आँखों का पानी है ढलका

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

हमारे सरों को फ़ज़ा में उछालो

हमें शौक़-ए-सब्र-आज़मा में उछालो

ये बे-कार नोट अब हवा में उछालो

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

हर इक ग़म को इफ़रात-ए-ज़र में बहा लो

मईशत का ऐसा जनाज़ा निकालो

सियासत की भट्टी में सब झोंक डालो

ये रुपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

(1039) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Alamiya-e-naqd In Hindi By Famous Poet Fay Seen Ejaz. Alamiya-e-naqd is written by Fay Seen Ejaz. Complete Poem Alamiya-e-naqd in Hindi by Fay Seen Ejaz. Download free Alamiya-e-naqd Poem for Youth in PDF. Alamiya-e-naqd is a Poem on Inspiration for young students. Share Alamiya-e-naqd with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.