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उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले - फ़े सीन एजाज़ कविता - Darsaal

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

कितना दिलचस्प कहानी का ख़ुदा था पहले

ख़्वाब-लम्हा तिरी ख़ुशबू में बसा था पहले

बे-ख़बर नींद में इक फूल खिला था पहले

कोई तासीर थी जो ग़म को भुला देती थी

तेरे अंदर कोई फ़नकार छुपा था पहले

ये बदन अब तुझे बे-रूह खंडर लगता है

इस हवेली में इक इंसान जिया था पहले

वक़्त पर मौत की लज़्ज़त भी नहीं दे पाया

मुझ को वो आदमी हीरा ही लगा था पहले

इक स्वेटर ने बढ़ा दी थी जवानी मेरी

तुम ने मेरे लिए इक ख़्वाब बुना था पहले

मैं जो कहता था वही बात हुआ करती थी

मेरे घर में कोई जादू का दिया था पहले

कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल

कितनी ख़ामोशी से दरवाज़ा खुला था पहले

जो भी चेहरा था वो अपना सा लगा करता था

मय-कदा रक़्स में जब झूम रहा था पहले

उठ गया है तो अब इस शहर को ले डूबेगा

वही तूफ़ाँ मिरे अंदर जो दबा था पहले

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