वो जिस का नाम पड़ा है ख़मोश लोगों में
यहाँ पे लफ़्ज़ों के दरिया बहा रहा था अभी
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दिल ओ नज़र की बक़ा है फ़क़त मोहब्बत में
तुम मुझे छोड़ के इस तरह नहीं जा सकते
हवा ने छीन लिया आ के मेरे होंटों से
हमारे दिल की बजा दी है उस ने ईंट से ईंट
उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे
रूठे लोगों को मनाने में मज़ा आता है
बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल ये ज़िंदगी
तुम्हारे लिए मुस्कुराती सहर है
जो पलकों से गिर जाए आँसू का क़तरा
उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने