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नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है - फ़ातिमा वसीया जायसी कविता - Darsaal

नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है

नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है

ये ज़ेहन-ओ-दिल ये बिला-वज्ह बार किस का है

बताए कौन ये अहल-ए-ख़िरद से महफ़िल में

चमन है किस के लिए ख़ार-ज़ार किस का है

हमारा नाम तो ग़ैरों में हो गया शामिल

जो लोग अपने हैं उन में शुमार किस का है

किसी को दौलत-ए-दुनिया किसी को इज़्ज़त-ए-नफ़्स

ख़ुदा की देन पे अब इख़्तियार किस का है

उरूस-ए-मौत से जल्दी है किस को मिलने की

क़दम बढ़ा हुआ ये सू-ए-दार किस का है

फ़रिश्ते आ के 'वासिय्या' से बोले मरक़द में

लहद में आप को अब इंतिज़ार किस का है

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