उस के प्याले में ज़हर है कि शराब
कैसे मालूम हो बग़ैर पिए
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(920) Peoples Rate This
कितने अच्छे लोग थे क्या रौनक़ें थीं उन के साथ
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया
मनाज़िर ख़ूब-सूरत हैं
नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ
किस से बिछड़ी कौन मिला था भूल गई
अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी
बिछड़ रहा था मगर मुड़ के देखता भी रहा
बिखर रहे थे हर इक सम्त काएनात के रंग
रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं
नज़्म