ठेस कुछ ऐसी लगी है कि बिखरना है उसे
दिल में धड़कन की जगह दर्द है और जान नहीं
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मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
अच्छा लगता है
दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
रात दरीचे तक आ कर रुक जाती है
ख़ुशबू है और धीमा सा दुख फैला है
मौसम की पहली बारिश
नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ
जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में
हमारी नस्ल सँवरती है देख कर हम को
उलझ के रह गए चेहरे मिरी निगाहों में
पहचान जिन से थी वो हवाले मिटा दिए