सुन रहे हैं कान जो कहते हैं सब
लोग लेकिन सोचते कुछ और हैं
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
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Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
मौसम की पहली बारिश
एक नज़्म माँ के लिए
भूल गई हूँ किस से मेरा नाता था
मकाँ बनाते हुए छत बहुत ज़रूरी है
मैं ने माँ का लिबास जब पहना
जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में
ज़ख़्मी उँगलियों से एक नज़्म
मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
और कोई नहीं है उस के सिवा