मैं ने माँ का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए
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क़ुर्बतों में फ़ासले कुछ और हैं
बिछड़ रहा था मगर मुड़ के देखता भी रहा
रुका जवाब की ख़ातिर न कुछ सवाल किया
बिखर रहे थे हर इक सम्त काएनात के रंग
कब उस की फ़त्ह की ख़्वाहिश को जीत सकती थी
रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं
उस के प्याले में ज़हर है कि शराब
ख़ुशबू है और धीमा सा दुख फैला है
मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
मौसम की पहली बारिश
हमारी नस्ल सँवरती है देख कर हम को
भूल गई हूँ किस से मेरा नाता था