कोई नहीं है मेरे जैसा चारों ओर
अपने गिर्द इक भीड़ सजा कर तन्हा हूँ
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सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
कितने अच्छे लोग थे क्या रौनक़ें थीं उन के साथ
पूरी न अधूरी हूँ न कम-तर हूँ न बरतर
जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में
ठेस कुछ ऐसी लगी है कि बिखरना है उसे
यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ
मकाँ बनाते हुए छत बहुत ज़रूरी है
ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है
ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है
जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया
सुन रहे हैं कान जो कहते हैं सब
दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो