दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
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और कोई नहीं है उस के सिवा
मौसम की पहली बारिश
उस के प्याले में ज़हर है कि शराब
ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है
मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी
नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ
कितने अच्छे लोग थे क्या रौनक़ें थीं उन के साथ
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
सुन रहे हैं कान जो कहते हैं सब
एक नज़्म माँ के लिए
आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था