मेरी बेटी चलना सीख गई
मेरी बेटी उँगली छोड़ के
चलना सीख गई
संग-ए-मील पे हिंदिसों की पहचान से आगे
आते जाते रस्तों के हर नाम से आगे
पढ़ना सीख गई
जलती बुझती रौशनियों और रंगों की तरतीब
सफ़र की सम्तों और गाड़ी के पहियों में
उलझी राहों पर
आगे बढ़ना सीख गई
मेरी बेटी दुनिया के नक़्शे में
अपनी मर्ज़ी के
रंगों को भरना सीख गई
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