रुका जवाब की ख़ातिर न कुछ सवाल किया

रुका जवाब की ख़ातिर न कुछ सवाल किया

मगर ये ज़ोम कि हर राब्ता बहाल किया

थकन नहीं है कठिन रास्तों पे चलने की

बिछड़ने वालों के दुख ने बहुत निढाल किया

जो टूटना था फ़क़त दर्द ही का रिश्ता था

तो दिल ने क्यूँ भला इस बात पर मलाल किया

बचा के रखना था इक अक्स अपनी आँखों में

बड़े जतन से उन्हें आईना-मिसाल किया

लहू में तैर गई वो घड़ी जुदाई की

कि जिस के ज़हर ने जीना मिरा मुहाल किया

बिछड़ रहा था मगर मुड़ के देखता भी रहा

मैं मुस्कुराती रही मैं ने भी कमाल किया

ख़बर थी उस को कि दश्त-ए-हुनर से आई हूँ

सो उस के लफ़्ज़ों ने ज़ख़्मों का इंदिमाल किया

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