मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी
मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी
लगी है आग जहाँ भी किसी के घर में लगी
अजीब रक़्स कि वहशत की ताल है जिस में
अजीब ताल जो आसेब के असर में लगी
किवाड़ बंद कहाँ मुंतज़िर थे आहट के
लगी जो देर तो दहलीज़ तक सफ़र में लगी
तमाम ख़्वाब थे वाबस्ता उस के होने से
सो मेरी आँख भी बस साया-ए-शजर में लगी
हिसार-ए-ज़ात नहीं था तिलिस्म-ए-इश्क़ था वो
ख़बर हुई तो मगर देर इस ख़बर में लगी
दहकते रंग थे जो आसमान छूते थे
खिले थे फूल कि इक आग सी शजर में लगी
अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी
दुआ को फिर भी नहीं देर कुछ असर में लगी
पलट के देखा तो बस हिजरतें थीं दामन में
अगरचे उम्र यहाँ इक गुज़र-बसर में लगी
परिंद लौट कर आए थे किन ज़मीनों से
कहाँ की धूल थी जो उन के बाल-ओ-पर में लगी
(956) Peoples Rate This