मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है
ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी और है
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सितारों की तरह अल्फ़ाज़ की ज़ौ बढ़ती जाती है
ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है
किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है
हर एक आँख में आँसू हर एक लब पे फ़ुग़ाँ
बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी
मुज़्तरिब दिल की कहानी और है
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
देखिए हालात के जोगी का कब टूटे शराप
जड़ों से सूखता तन्हा शजर है
कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए