हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं
कि परचम की जगह नेज़े पे अपना सर निकलता है
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किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है
जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी
मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है
सितारों की तरह अल्फ़ाज़ की ज़ौ बढ़ती जाती है
जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है
हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के
जड़ों से सूखता तन्हा शजर है
बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है
प्यार जादू है किसी दिल में उतर जाएगा
अब किसी और का तुम ज़िक्र न करना मुझ से