बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
सवाल कर के उसे देखना ज़रूरी है
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किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी
उस की दीवार पे मनक़ूश है वो हर्फ़-ए-वफ़ा
जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है
कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए
ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है
किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है
लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर
हर एक आँख में आँसू हर एक लब पे फ़ुग़ाँ
मुद्दत से वो ख़ुशबू-ए-हिना ही नहीं आई
मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है
मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं