लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर
लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर
हाथ में टूटे कासे थामे दौड़े आए फ़क़ीर
सोच रहा है देर से बे-चारा इक मजमा-बाज़
शाम तलक कुछ हाथ न आया दिन भर की तक़रीर
गाँव गाँव माँग रहे हैं क़िस्मत की ख़ैरात
जन्नत दोज़ख़ बेचने वाले शहरी पीर फ़क़ीर
भूले-बिसरे लफ़्ज़ उचट कर मिटा गए मफ़्हूम
दिन को पढ़ने बैठे जब भी रात की हम तहरीर
जलती फ़िक्र की ज़द पर आ कर झुलसें जो अल्फ़ाज़
आए उन अल्फ़ाज़ से कैसे शेरों में तासीर
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