तिरे ख़िलाफ़ किया जब भी एहतिजाज ऐ दोस्त
मिरा वजूद भी शामिल नहीं हुआ मिरे साथ
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वो भी गुमराह हो गया होगा
ये दिल-कथा है अदाकार तेरे बस में नहीं
नख़्ल-ए-ममनूअा के रुख़ दोबारा गया मैं तो मारा गया
हम वफ़ादार हैं और इस से ज़ियादा क्या हों
हाँ कभी रूह को नख़चीर नहीं कर सकता
गली का पत्थर था मुझ में आया बिगाड़ ऐसा
वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ
सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ
कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू
दर-ए-फ़क़ीर पे जो आए वो दुआ ले जाए
वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मेरे साथ
इश्क़ हूँ जुरअत-ए-इज़हार भी कर सकता हूँ