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वो भी गुमराह हो गया होगा - फ़रताश सय्यद कविता - Darsaal

वो भी गुमराह हो गया होगा

वो भी गुमराह हो गया होगा

मेरा बद-ख़्वाह हो गया होगा

मेरे हक़ में जो बोल उट्ठा है

दर्द-आगाह हो गया होगा

सज्दा-ए-शौक़ जो अदा न हुआ

संग-ए-दरगाह हो गया होगा

हादसे की हमें ख़बर ही नहीं

ख़ैर नागाह हो गया होगा

वाक़िआ' आप तक नहीं पहुँचा

नज़्र-ए-अफ़्वाह हो गया होगा

सूरत-ए-हाल देख कर वो भी

तेरे हमराह हो गया होगा

वक़्त के साथ साथ उस का क़द

और कोताह हो गया होगा

इस बरस भी न आ सका 'फ़रताश'

वक़्फ़-ए-तंख़्वाह हो गया होगा

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