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सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है - फ़रताश सय्यद कविता - Darsaal

सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है

सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है

तंग हों लोग तो सरदार पे हर्फ़ आता है

वैसे तो मैं भी भुला सकता हूँ तुझ को लेकिन

इश्क़ हूँ सो मिरे किरदार पे हर्फ़ आता है

घर की जब बात निकल जाती है घर से बाहर

दर पे हर्फ़ आता है दीवार पे हर्फ़ आता है

कितना बे-बस हूँ कि ख़ामोश मुझे रहना है

बोलता हूँ तो मिरे यार पे हर्फ़ आता है

चुप जो रहता हूँ तो हूँ बरसर-ए-महफ़िल मुजरिम

अर्ज़ करता हूँ तो सरकार पे हर्फ़ आता है

शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा लब पे अगर आ जाए

दिल पे हर्फ़ आता है दिलदार पे हर्फ़ आता है

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