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मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ - फ़रताश सय्यद कविता - Darsaal

मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ

मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ

सो हैरतों के लिए मसअला बना हुआ हूँ

पहुँच तो सकता था मंज़िल पे मैं मगर ऐ दोस्त

मैं दूसरों के लिए रास्ता बना हुआ हूँ

मैं जब चला था तो अपने भी मुझ को छोड़ गए

और आज देख लो मैं क़ाफ़िला बना हुआ हूँ

सितम तो ये है कि है मेरी दास्ताँ और मैं

शरीक-ए-मत्न नहीं हाशिया बना हुआ हूँ

कभी था क़ैस कभी 'मीर' और अब 'फ़रताश'

सुलूक-ए-इश्क़ का इक सिलसिला बना हुआ हूँ

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