दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला
कहाँ गया मिरी दुनिया सँवारने वाला
Gulzar
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अभी तलक है सदा पानियों पे ठहरी हुई
तुम तो ख़ुद सहरा की सूरत बिखरे बिखरे लगते हो
हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ने किया शिकार
तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे
मिरे जज़्बे मिरी शहादत हैं
बीते लम्हे कशीद करती हूँ
होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में