फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
नाम | फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Farrukh Zohra Gilani |
तुम तो ख़ुद सहरा की सूरत बिखरे बिखरे लगते हो
मिरे जज़्बे मिरी शहादत हैं
हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ने किया शिकार
दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला
अभी तलक है सदा पानियों पे ठहरी हुई
तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे
होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में
दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला
बीते लम्हे कशीद करती हूँ