मुझे खोल ताज़ा हवा में रख

ये जो फ़स्ल-ए-फ़ुर्क़त-ए-अस्र है

इसे काट भी

ये जो दफ़्तर-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त है

इसे बंद कर

इसे बंद कर कि वो बुत-फ़रोश नहीं रहे

जो असीर थे रुख़-ए-दहर के

तिरे रू-ब-रू तिरे चार सू

शब हस्त-ओ-बूद की राह में तिरे हम-क़दम

तिरे आइनों की शिकस्तगी का भरम लिए

कोई और कब है मिरे सिवा

कोई और कब था मिरे बग़ैर

मगर ऐ रहीन-ए-दम-ए-अलस्त

मिरे वाक़िए के मुक़द्दमात से पेशतर

मेरी बंदगी को फ़रोग़ दे

कभी दोपहर के ख़ुमार में

किसी अक्स-ए-मौज-ए-बला में रख

मिरे ख़ाक-ओ-ख़ूँ को निहाल कर

मुझे खोल ताज़ा हवा में रख

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Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh In Hindi By Famous Poet Farrukh Yar. Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh is written by Farrukh Yar. Complete Poem Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh in Hindi by Farrukh Yar. Download free Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh Poem for Youth in PDF. Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh is a Poem on Inspiration for young students. Share Mujhe Khol Taza Hawa Mein Rakh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.